शहीद उद्धम सिंह एक क्रांतिकारी और जन नायक

वीर शहीदों के बलिदान से ही सामान्य जन मानस की राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के आंदोलन में सम्पूर्ण भागीदारीता की चेतना का विकास हुआ, जिससे 15 अगस्त 1947 में देश के नागरिकों ने आजादी की सांस ली भारत एक राष्ट्र बना और एक आजाद लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना सुनिश्चित हुई

इन्ही महान वीर शहीदों में शहीदआजम शहीद उद्धम सिंह जिनका जन्म 1899 में पंजाब प्रांत के सुनाम में एक काम्बोज परिवार में हुआ था उनके युुवा  होने से पूर्व ही उनके सर से  माता और पिता का साथ छूट गया, इसके बावजूद भी वह

अनेक कलाओं ( मैकेनिक, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन, सिविल इंजीनियर, पलम्बर, बारबर, ड्राइविंग, कुकिंग, बहुभाषाविद्, वेशभुषाविद् , कानून का ज्ञाता, कुशल अभिनेता, कुशल लेखक, शिल्पकार, योजनाकार और  कुशल प्रबंधक इत्यादि) में प्रांगण होने के साथ-साथ वह सच्चरित्र, सहनशील, स्वस्थचित्त, समतामूलक, सुक्ष्मदर्शी, शाहसी,बलिदानी, दूरदर्शी,जिज्ञासु, मूल्य सम्पन्न, धर्म निरपेक्ष, मानवतावादी, कर्त्तव्यनिष्ठा और सत्यनिष्ठा जैसे गुणों से संपन्न होकर, महिलाओं, मातृत्व के सम्मान के रक्षक, मानवीय अधिकारों के संरक्षक, अनाथों के प्रति समानुभूति,  प्रबल चरित्र के धनी, देश की एकता और अखंडता के प्रतीक (राम मोहम्मद सिंह आजाद), विविधता में एकता के आदर्श, शोषितों व वंचितों की आवाज, वह अपने देश को ब्रिटिश अत्याचार और शोषण से मुक्त कराने के लिए आजीवन मन्सा-वाचा-कर्मणा समर्पित रहे और अपने जीवन को देश की आजादी के लिए न्योछावर कर दिया।

 

International Mahasabha

Shaheed Udham Singh Dharmashala Chowk, Sunam Udham Singh Wala, Punjab-148028(India)

21 साल बाद बदला लिया

उधम सिंह के द्वारा ब्रिटिश अधिकारी की हत्या को हिंसा करार देते हुए कुछ लोग इस कृत्य को अनुचित मानते है किन्तु यदी हम उनके कृत्य को भारतीय एतिहासिक कसौटियों पर परखते है तो स्थित स्पष्ट होती है।

एतिहासिक घटनाक्रम में चाणक्य द्वारा घनानंद की हत्या कराकर अत्याचारी नंद वंश का अंत करना, चन्द्र गुप्त मौर्य द्वारा सेल्युकस की पराजय, समुद्र गुप्त द्वारा विदेशी आक्रांताओं का दमन, हर्ष द्वारा शशांक से बदला, शिवाजी द्वारा स्वराज के लिए अफजल खान की हत्या, मंगल पाण्डेय द्वारा 1857 के बिद्रोह का बिगुल फूंकना आदि सारी घटनाओं में हम नायक के रूप में उद्धम सिंह के आदर्शों की प्रतिछाया देखते हैं जो ब्रिटिश अत्याचार, शोषण और अन्याय के विरुद्ध संघर्षरत रहे।

शहीद उद्धम सिंह द्वारा शोषणकारी ब्रिटिश के घर में घुसकर 21 वर्षो बाद (जलियांवाला बाग-1919 में हुए कत्लेआम) जर्नल माइकल ऑडायर को भरी सभा में सामने से गोली मारना, यह एक शेर ( शेरसिंह बचपन का नाम) की दहाड थी, जिसकी गूँज दूसरे विश्वयुद्ध के दोरान संपूर्ण विश्व को सुनाई दी । कभी न अस्त होने वाले सूरज (ब्रिटिश साम्राज्य) को उनके घर मे ही डूबों दिया गया। यह घटनाक्रम न केवल कामागाटामारू प्रकरण, जलियावाला बाग हत्याकांड का बदला मात्र था अपितु गरीब, वंचित, बेदखल किसानों के शोषण और ब्रिटिश अत्याचारों का प्रतिफल भी था, जो सदियों से निरंतर चलायमान था। यह उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद की नीव पर एसा प्रहार था जिसने ब्रिटिश के खोखलेपन को सार्वजनिक कर स्वतन्त्रता की लौ को पूूर विश्व में तीव्र किया ।

उद्धम सिंह द्वारा भारत माँ के शत्रु का उसी प्रकार वध किया  जैसे भगवान श्रीराम द्वारा रावण (ऑडायर) का वध, जिसने अनेक सीताओं को उनके पति से हमेशा के लिए अलग कर दिया था। भगवान श्री कृष्ण द्वारा कंश(ऑडायर)का वध, जिसने अनेक माताओं की कोख को उजाडा था।

माॅदुर्गा  द्वारा महिषासुर(ऑडायर)का वध, जो महिलाओं, बच्चों व सामान्य जन मानस को पीड़ा  पहुंचाता था। यह शिव का वह ताण्डव  था जो 13 मार्च 1940 को ब्रिटेन की भूमि पर उद्धम सिंह के द्वारा रचा गया था। उद्धम सिंह गौतम बुद्ध के उन असंख्य दुखी पीड़ित अनाथ लोगों के अनन्त  आंसुओं को पोछने का प्रयास करते हैं, जो बेगुनाहों ने वर्षों बहाए थें।सवालाख से एक लड़कर उद्धम सिंह गुरु ग्रंथ साहिब की शोषण,अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध वीणी की साकार अभिव्यक्ति  बनते हैं। उद्धम सिंह कबीर के शोषण,असमान्ता व भेदभाव के विरुद्ध वचनों को अपने समय परिस्थित के अनुरूप प्रतिक्रियास्वरूप थे। वह गांधी जी के उन आदर्शों का प्रतीक बने जो अन्याय के खिलाफ खडे थे। उद्धम सिंह भगवान कृष्ण के वह जाग्रित अर्जुन थे। जिसे जगाने के लिए भगवान श्री कृष्ण द्वारा भागवत गीता के दुसरे अध्याय के अनेक श्लोकों की रचना करनी पडी थी।

वह भविष्य के भारतीय संविधान में शामिल होने वाले मौलिक अधिकारों जेैसे-समता, स्वतंत्रता,न्याय व शोषण के विरुद्ध अधिकारों के लिए पक्षपातपूर्ण, दूषित व्यवस्था का डटकर अकेले मुकाबला करते हैं। वह व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर सार्वजनिक हितों के रक्षक बने।

 सम्पूर्ण जीवन मन, वचन और कर्म से देश के लिए जिये और देश के लिए अपने जीवन को बलिदान करने वाले शिरोमणी शहीदो को नजरअंदाज करके आखिर हम कैसा भारत बनाना चाहते हैं ?

अपने इतिहास के वीर शहीद क्रान्तिकारी और जन नायकों के बलिदान को भुलाकर कोई देश व समाज ना तो संविधानिक मूल्यों को प्राप्त कर सकता हैं और ना ही प्रगतिशील पथ का मार्ग दर्शक बन सकता हैं, हमें एसे वीर शहीदों का निरन्तर नमन करना चाहिए, उनकी पूूजा और वन्दना करनी चाहिए ।

“दिल से निकलेंगी न मरकर भी वतन की उलफत तेरी मिट्टी से भी खुशबू ए वतन आयेगी ।”

डॉक्टर आशु काम्बोज

चौ॰ चरण सिंह विश्वविद्याल

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